Thursday, January 13, 2011

सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।

सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।

जोर जोर सॅ लगबैत हिंदुत्वक नारा,
हाथ में भगवा झंडा,
कहथि अपना के धर्म संरक्षक ?
मुदा कि अछि अहांक कर्तव्य कहु ?
कि अछि अहांक संकल्प कहु ?
किया अछि आई ई हिंदुत्वक हाल ?
भ्रष्ट, गरीब आ कंगाल।
विश्वक मूल में उत्पति भेल,
आ अछि आई एते छोट परिवार?
अछि गवाह इतिहास-
छोड़लौ सब दिन अपन विचार-संस्कार।
तें आई सौंसे पाबि दुत्कार।
अछि पसरल निघ्ष्ट आहार व्यवहार,
कतौ अंडा कतौ मुर्गाक टांग,
धर्मक रक्षा करू भगवान।।
सोईत नहिं जानैत वेदक नाम,
ब्राम्हण तेजल ब्रम्हक ज्ञान।
अर्थक अधीन ई मानव जाति,
भेल अछि आन्हर, बनल निष्प्राण।
अछि भ्रष्टाचार में लिप्त समाज,
बेईमानि में करथि विश्वास।
अधर्म मात्रक अछि गुणगान,
हे भगवान हे भगवान।।
करू करू जग कल्याण।।
लिया पुनः अवतार हे हरि,
सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।
लिया स्वरूप यौ भगवान,
अधर्म राज के बनाउ शमशान।
अछि विभिषण अखनो दू-चारि,
बॉटू प्रेम, मिटाउ वैर।।
नारायण-नारायण, हरि-हरि।।
सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।
अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

घुर तर सिमटल जिवनक रंग

घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।

अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।
सिहकैत पछवा सिहरैत देह,
सकुचल धोकचल हाड़-मॉस संग,
त्रस्त अछि पूरा विदेह।
अनलक जाड़ सनेस छोट छीन,
ठोर पर पपड़ी पैर में अगिया,
सूझय नहिं बाट दिन कुहेसिया,
भोरको भात लागै अछि बसिया,
सब राति लागै अछि अमावस्या।
अछि सर्द बनल जीनगी-प्राण,
उगु उगु यौ भगवान।।
फूहि जकॉ खसै अछि पाला,
थर-थर कपैत हाथ सॅ नहिं सम्हरै चाईक प्याला,
दिन आगि राति तुराई,
भेल बड खराब समय यौ भाई।
समय से पहिने भरहल छी अस्त,
हालत पस्त भेष बदरंग,
नहिं उत्साह नहिं कोनो उमंग।
अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।

अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com