घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।
अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।
सिहकैत पछवा सिहरैत देह,
सकुचल धोकचल हाड़-मॉस संग,
त्रस्त अछि पूरा विदेह।
अनलक जाड़ सनेस छोट छीन,
ठोर पर पपड़ी पैर में अगिया,
सूझय नहिं बाट दिन कुहेसिया,
भोरको भात लागै अछि बसिया,
सब राति लागै अछि अमावस्या।
अछि सर्द बनल जीनगी-प्राण,
उगु उगु यौ भगवान।।
फूहि जकॉ खसै अछि पाला,
थर-थर कपैत हाथ सॅ नहिं सम्हरै चाईक प्याला,
दिन आगि राति तुराई,
भेल बड खराब समय यौ भाई।
समय से पहिने भ’ रहल छी अस्त,
हालत पस्त भेष बदरंग,
नहिं उत्साह नहिं कोनो उमंग।
अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।
अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com
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