Thursday, April 7, 2011

आई मिझा रहल छि?

सिसकि सिसकि किछु सुना रहल छि,
छालकैत नोर  के कपैत हाथ से सज़ा रहल छि. 
अछि जिनगी के यथार्थ बड कस्टकर,
केहुना केहुना दिन बिता रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?
पूरा करब आस? नहि अछि विश्वास,
लोक लाज से मुह नुका रहल छि.
अछि विचित्र विकृति दुनिया के रीति,
नहि प्रीति नहि मीत बस स्वार्थ-कुरीति
एहि थाल  में हम लेटा रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?
प्रकृति संघर्ष, कर्म उत्कर्ष, नाम जिनगी-
ई पहेली में ओझरा रहल छि,
हम द्रिध्प्रतिघ्य , हम द्रिध्संकल्पित,
अविनाशक  अर्थ मेटा रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?

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