Friday, December 17, 2010

ghuri aau ghar hey Pardesia.....

घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!

अछि दुशासन बनल आई पश्चिम के बयार,
चीर हरण के अछि तैयार।
किया छी रुसल यौ मिथिला के पूत ?
आई कियेा नहिं बैासाईत, नहिं देत हकार,
अपने चिन्हु अपन संस्कार।
मिझा रहल अछि आई दीप घर में,
पसरि रहल अछि सैांसे अन्हार।
जनम देलनि जेकरा ओते दुःख कस्ट झेल के,
बदलि गेल आई ओहि संतानक ब्यबहार।
गेला घर सॅं किछु निक सिखै लेल,
मुदा बिसरि गेला अछि लाज-विचार।
पाहुन परख के आदर के पूछय ?
पैर नहिं छुबैत हाथ मिलाबैत,
कहतैत- नव पीढी के नया व्यवहार।
जे माई बाप हिनका पैघ बनेलक,
ओकरे आई छथि ई ठुकरबैत।
पाई मुॅह पर एना फेकैत छथि-
जेना केानेा कर्जा सधाबैत।
हक्कन कनता काल्हि ई कपूत सब,
पाथर सॅं फेारता अपन कपार।
मेान राखब हमर गप्प अहॉं,
सुनत लेाक काल्हि हिनक चीत्कार।
जाहि ध्रती पर कवि विद्यापति, नार्गाजुन के जनम भेल,
गैातम, मंडन, अयाचि सन भेल विद्वान,
ओहि माटि पर आई भेल सुखाड़।
छल स्याहि कागज जतय के गहना,
अछि आई ओतय स्नेा पाउडर के भरमार।
जकरा अहॉं बुझै छी फैशन के नगरी,
ओ काल्हि बनत गला के फॅंसरी।
होयत संतान अहूॅ के दू टा,
देत अहूॅ के एहने उपहार।
घुरि आउ घर देरि नहिं भेल,
बनू सपूत, बनू होशियार,
करु मातृभूमि सॅं स्नेह अपार।
अछि आई मिथिला अहॉंक स्वागत के तैयार।
हम अविनाश अहॉं के संवदिया,
घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!
घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!

अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

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