Friday, December 17, 2010

Nhi Bigru......!!


2. नहिं बिगडु. ........ ।।

छी बालक हम अबोध अज्ञान,
नहिं नीक नहिं खराबक ज्ञान,
प्रेम मात्रक अछि अभिज्ञान।
हम नै चिन्हीं दोस आ दुश्मन,
किया अछि चढहल ऑखि हमरा पर?
बात नहिं, कर पकडु़......!!
नहिं बिगडु.....नहिं बिगडु.....।।

अछि अनजान हमर पहचान,
के छथि हमर जनक आ-
के जननी महान ?
छी अनाथ हम टुगड़,
करू कल्याण, कर पकड़ु......!!
नहिं बिगडु.....नहिं बिगडु.....।।

फेंक देलक ओ जनम देहि के,
बदनसीब हम संतान।
कि छल हमर अपराध जे-
बनल अभिषप्त जीवन-जान ?
किया खिसियै छी हमरा पर ?
करू दया, कर पकड़ु.....!!
नहिं बिगडु.....नहिं बिगडु.....।।


अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

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