Thursday, April 7, 2011

आई मिझा रहल छि?

सिसकि सिसकि किछु सुना रहल छि,
छालकैत नोर  के कपैत हाथ से सज़ा रहल छि. 
अछि जिनगी के यथार्थ बड कस्टकर,
केहुना केहुना दिन बिता रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?
पूरा करब आस? नहि अछि विश्वास,
लोक लाज से मुह नुका रहल छि.
अछि विचित्र विकृति दुनिया के रीति,
नहि प्रीति नहि मीत बस स्वार्थ-कुरीति
एहि थाल  में हम लेटा रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?
प्रकृति संघर्ष, कर्म उत्कर्ष, नाम जिनगी-
ई पहेली में ओझरा रहल छि,
हम द्रिध्प्रतिघ्य , हम द्रिध्संकल्पित,
अविनाशक  अर्थ मेटा रहल छि.
अपन घरक अखंड दीप हम-
आई मिझा रहल छि?

Thursday, March 24, 2011

अछि मरल स्वाभिमान आई पाई बिनु.

अछि पुत्र  विकल विह्वल हे माई सुनु,
अछि मरल स्वाभिमान आई पाई बिनु.
कोमल ह्रदय चीत्कार करैत अछि,
'अप्पन लोक' दुत्कार करैत अछि.
स्वार्थ-प्रीत से आन्हर समाज ,
बनल कृतघ्न, तेजल लाज.
विवेकहीन  बनी  दुर्व्यवहार  करैत  अछि ,
किया  नहि  केखनो  विचार  करैत  अछि ?
खोलू  हमरो  कपारक  किवार  हे  माई ,
अछि  थाकल  शरीर , आब  कोना  करू  लराई ?
कोना  जियब  पहार  जिनगी  हम ?
गरीबी   में  जनम  अपराध  छल ? वा -
फूटल  अछि  हमर  करम  ?
सुनु -सुनु  हे माई सुनु ,
अछि  मरल  स्वाभिमान  आई  पाई  बिनु .

Thursday, January 13, 2011

सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।

सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।

जोर जोर सॅ लगबैत हिंदुत्वक नारा,
हाथ में भगवा झंडा,
कहथि अपना के धर्म संरक्षक ?
मुदा कि अछि अहांक कर्तव्य कहु ?
कि अछि अहांक संकल्प कहु ?
किया अछि आई ई हिंदुत्वक हाल ?
भ्रष्ट, गरीब आ कंगाल।
विश्वक मूल में उत्पति भेल,
आ अछि आई एते छोट परिवार?
अछि गवाह इतिहास-
छोड़लौ सब दिन अपन विचार-संस्कार।
तें आई सौंसे पाबि दुत्कार।
अछि पसरल निघ्ष्ट आहार व्यवहार,
कतौ अंडा कतौ मुर्गाक टांग,
धर्मक रक्षा करू भगवान।।
सोईत नहिं जानैत वेदक नाम,
ब्राम्हण तेजल ब्रम्हक ज्ञान।
अर्थक अधीन ई मानव जाति,
भेल अछि आन्हर, बनल निष्प्राण।
अछि भ्रष्टाचार में लिप्त समाज,
बेईमानि में करथि विश्वास।
अधर्म मात्रक अछि गुणगान,
हे भगवान हे भगवान।।
करू करू जग कल्याण।।
लिया पुनः अवतार हे हरि,
सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।
लिया स्वरूप यौ भगवान,
अधर्म राज के बनाउ शमशान।
अछि विभिषण अखनो दू-चारि,
बॉटू प्रेम, मिटाउ वैर।।
नारायण-नारायण, हरि-हरि।।
सत्यक रक्ष करू बनि धर्मक प्रहरी।।
अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

घुर तर सिमटल जिवनक रंग

घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।

अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।
सिहकैत पछवा सिहरैत देह,
सकुचल धोकचल हाड़-मॉस संग,
त्रस्त अछि पूरा विदेह।
अनलक जाड़ सनेस छोट छीन,
ठोर पर पपड़ी पैर में अगिया,
सूझय नहिं बाट दिन कुहेसिया,
भोरको भात लागै अछि बसिया,
सब राति लागै अछि अमावस्या।
अछि सर्द बनल जीनगी-प्राण,
उगु उगु यौ भगवान।।
फूहि जकॉ खसै अछि पाला,
थर-थर कपैत हाथ सॅ नहिं सम्हरै चाईक प्याला,
दिन आगि राति तुराई,
भेल बड खराब समय यौ भाई।
समय से पहिने भरहल छी अस्त,
हालत पस्त भेष बदरंग,
नहिं उत्साह नहिं कोनो उमंग।
अछि कठुआयल अंग प्रत्यंग,
नहि हरबिररो नहि हुरदंग,
घुर तर सिमटल जिवनक रंग।।

अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

Tuesday, December 21, 2010

hindi sher.....

"Shayar likhta hai Khuda ki nemat me, hum aashik padhte hai ishe husn ki ibadat me..."


"Maine likhi thi ek kalaam-
Allaha pak ki tariff-e-mohabbat me.
Magar nadan insaan kha samja??
Karta hai ikraar ishe noor se Ijhaar-e-mohabbat me”

Friday, December 17, 2010

khoon bhele yo khoon....

खून..............!!

गम घर में शोर मचल अछि,
सज्जन सब आई चोर बनल छथि,
कि अछि एकर कारण ?
भ्रष्ट समाजक रीति में,
अंधकारक प्रीति में,
प्रेमक भेल अछि खून।
खून भेलै यौ खून......!!
न लाज न धाख, केवल बेईमानक अछि साख,
दुनिया के भेल ई रीवाज।
एना चलतै कोना, दिन ढलतै कोना ?
करु नेॅ कोनो उपचार।
भ्रष्टाचारक अछि अध्किार,
नीक खराबक नहिं अछि विचार।
भ्रष्टताक उन्माद में,
प्रेमक भेल अछि खून।
खून भेलै यौ खून........!!
भेल आठो पहर, जीने दूभर हमर,
अछि शमशान बनल ई धरती समर।
बाट चलू कोना, गप्प करु कोना ?
देह में भरल अछि जहर।
कलंक आई हथियार बनल अछि,
नीचताक सीमा मिटल अछि,
प्रेमक भेल अछि खून।
खून भेलै यौ खून........!!

अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com

ghuri aau ghar hey Pardesia.....

घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!

अछि दुशासन बनल आई पश्चिम के बयार,
चीर हरण के अछि तैयार।
किया छी रुसल यौ मिथिला के पूत ?
आई कियेा नहिं बैासाईत, नहिं देत हकार,
अपने चिन्हु अपन संस्कार।
मिझा रहल अछि आई दीप घर में,
पसरि रहल अछि सैांसे अन्हार।
जनम देलनि जेकरा ओते दुःख कस्ट झेल के,
बदलि गेल आई ओहि संतानक ब्यबहार।
गेला घर सॅं किछु निक सिखै लेल,
मुदा बिसरि गेला अछि लाज-विचार।
पाहुन परख के आदर के पूछय ?
पैर नहिं छुबैत हाथ मिलाबैत,
कहतैत- नव पीढी के नया व्यवहार।
जे माई बाप हिनका पैघ बनेलक,
ओकरे आई छथि ई ठुकरबैत।
पाई मुॅह पर एना फेकैत छथि-
जेना केानेा कर्जा सधाबैत।
हक्कन कनता काल्हि ई कपूत सब,
पाथर सॅं फेारता अपन कपार।
मेान राखब हमर गप्प अहॉं,
सुनत लेाक काल्हि हिनक चीत्कार।
जाहि ध्रती पर कवि विद्यापति, नार्गाजुन के जनम भेल,
गैातम, मंडन, अयाचि सन भेल विद्वान,
ओहि माटि पर आई भेल सुखाड़।
छल स्याहि कागज जतय के गहना,
अछि आई ओतय स्नेा पाउडर के भरमार।
जकरा अहॉं बुझै छी फैशन के नगरी,
ओ काल्हि बनत गला के फॅंसरी।
होयत संतान अहूॅ के दू टा,
देत अहूॅ के एहने उपहार।
घुरि आउ घर देरि नहिं भेल,
बनू सपूत, बनू होशियार,
करु मातृभूमि सॅं स्नेह अपार।
अछि आई मिथिला अहॉंक स्वागत के तैयार।
हम अविनाश अहॉं के संवदिया,
घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!
घुरि आउ घर हे परदेशिया ...........!!

अविनाश कुमार
लालगंज, सरिसब-पाही
मधुबनी
मो.-8051997288
ईमेल-ak25avi@gmail.com